Fantasy World


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world of fantasy "kalpnik Duniya" lies in the heart of each and every individual...so, join this world and share your fantasy moments too ..............................
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Saturday, November 19, 2011

मोहब्बत, मोहब्बत और सिर्फ मोहब्बत-चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी )


उस रोज जब शाम ढलेगी ,
मैं होले से मुस्काते हुए, तुम्हारे बाहों में सिमट जाऊँगी,
जिस तरह सागर की बाहों में चांदनी सिमट जाती हैं .
तुम्हारे धड़कन की हर एक साज पर ,
झूम उठेगी दुनिया  मेरी .
तुम्हारे  आँखों के आईने में मेरा शर्माता हुआ चेहरा ,
चाहत की लाली से खिल उठेगा .
एक लम्हे के लिए ये दुनिया जैसे थम सी जाएगी.
खामौसी की चादर में लिपटी हुई वह शाम ,
मोहब्बत, मोहब्बत और  सिर्फ मोहब्बत , इन तीन लफ्जों में ,
पूरी दास्ताँ बयाँ कर जाएगी .
आँखों के काजल से एक नाम ,
आसमान के सीने में लिख जाऊ ,
ये  पैगाम छुपाकर रख दूँ सितारों के बिच .
कल अगर में न रहूँ , तो धुंड लेना मुझे,
तुम्हारे दिल के ही  किसी कोने होगा मेरा आशियाना.
बस सिने पर हात रख कर एकबार याद करना , 
तुम्हारे  धड़कन की हर एक ताल में से आवाज़ आयेगी  मेरी ........




Saturday, October 8, 2011

तुम , मैं और खामौशी - चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी)




तुम , मैं और खामौशी ,एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
कभी तुम यादों में आते हो ,तो कभी ख्वाबों में .
कभी बादल बनकर घिर आते  हो ,मेरी अँखियों के आसमान में
तो कभी खुशी बनकर छा जाते हो, इन लवों की मुस्कान में .
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
जब पास होते हो , तब ख़ामोशी से आँखों में आँखे डाल,जाने क्या क्या कह जाते हो .
और जब  दूर होते हो , तब भी मेरी  ख़ामोशी का हर एक पल  ,
अपनी यादों से महका जाते हो.
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
ऑघि ऑघि रात को,  जाग उठती हूँ मैं, लगता है जैसे कानों मेरे ,
धीरे से कोई कुछ कह गया हो , एक अजीब सी हलचल होती हैं सीने में ,
सोचती हूँ कहीं ये मोहब्बत  तो नही ?
सूखे हुए पत्तों की मर्मराहट में  आजकल किसी का नाम सुनाई देता हैं.
मेरे रेशमी दुपट्टे को छुती हुई , सावन की वह बहकी हवा ,
लगता है जैसे चुपके से तुम अपनी मोहब्बत का ईकरार कर गए हो .
या फिर सर्दी की धुप का  होले से , मेरे गालों को छु जाना ,
लगता है  जैसे की तुम अपने  दिल में छुपे हुए प्यार का ,एहसास दिला रहे हो.
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
मेरे दिल के हर एक पन्ने पर , सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा हुआ है ,
जरा अपनी धडकनों से , मेरे दिल के हर एक पन्ने  को पलट कर देखो तो नज़र आए.
पर हाँ , याद रखना जो कहना है आँखों से ही कहना ,
जो सुनना  है आँखों ही आँखों में ही सुन लेना ,दिल के बातें ख़ामोशी से हो , वही अच्छा है,
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.

Tuesday, September 13, 2011

यादें - चंद्रानी पुरकायस्थ


ए  चांद , आज तेरी चांदनी मेरी रेशमी जुल्फों  के साये में ,
खेलती हुई, कुछ कहती जा रही है ,कुछ यादों के तस्वीरें बनाती हुई,
कुछ सपनो के ताने बाने बुनती जा रही है.
तुझे याद है ना, वह सदियों पुरानी बातें,वह हसने-रोने के पल, वह मीठी सी फरियादें .
 मेरा वह आधी- आधी रात तक जागते रहना ,
वह पहले प्यार का सन्देशा , धड़कन की हलचल.
तुझ से बाते करते रहना, कितनी बार मिन्नतें की थी मैंने तुझसे,
कितनी बार अर्ज़िया भेजी थी , की मेरे खुवाबो में रोज आने वाला ,
चाहे  जो भी हो, जहाँ भी  हो,हलके के उसके कानो में कह्देना , 
कोई पलके बिछाये बैठा है राहों में तेरे, कभी लगा तू मुझ पर हसता होगा,
कहता होगा , अरी पागल, कहानियों के दुनिया से बाहर निकल ,
कभी महसूस होता जैसे तूने मुझसे कहा  हो  ,
इश्क पर जोर नहीं हैं ये वह आतिश , जो जलाये ना जले और बुझाये ना बुझे .
फूलों की पंखुड़ियों से  लिपटी हुई , ओस के बूंदों की तरह ,
मेरे दिल के  हर एक तमन्नायों से लिपटा हुआ तू,
कई  बार मैंने कसम दी थी तुझे तेरी  चांदनी की,
कहा था , वह जो बादल की आड में छुपा हुआ मेरे दिल को चुराता जाता हैं,
वह कभी तो किसी बिराने में खड़ा, तन्हाई के किसी एक अनजाने पल में,
तुझे निहारता होगा, होले से कहना उसे,
दुनिया के किसी कोने में कोई ,
तेरे चाहत का दिया जलाये बैठा   है  ,
दुनिया की भीड़ में भी तनहा तनहा ,
इन्तेजार के घड़ियों को आंसुओं के मोतीओं  से भिगोता हुआ,
यों ही तड़पता तरसता जीता चला जा रहा है .....




Thursday, August 25, 2011

एहसास -चंद्रानी पुरकायस्थ




आज फिर छलक आई आंखों में मेरी ,
चाहत के कुछ भीगे हुए पल.
तुम ना मानो तो बस बुंदे है, मानो तो  मोती है  अनमोल.
बहुत सी अनकही बातें इस दिल में छुपायें जी रही  हूँ  ,
कभी आँखों में झाँकों  तो नजर आएँ.  
कभी दूर दूर, तो कभी पास पास , 
कुछ सपनों के दस्तक और तुम्हारा एहसास .
बड़ी हसीन लग रही हैं ये जिंदगी आजकल .
तुम क्यों हर बार सितारों  की तरह  रौशन कर जाते हो इस दिल को? 
सावन की पहली बारिश जैसी मीठी सी एक मुस्कान सजा जाते हो होठो पर मेरे, क्यों?
वक़्त या वजह, सब दायरों से  दूर , 
अपनी एक अलग ही जगह बनाये हुए हो  धड्कनों में मेरे  .
पहले कभी तो ऐसा  सोचा ना था ,
की हकीकत में भी चाहत एक मीठा सा तराना  है.
सर्दी की धुप जैसा  खुशनुमा ,चांदनी की तरह दिलकश ;
और बारिश के सुबह के जैसा हल्का हल्का दर्द जगाने वाला .
जो ना जीने देती हैं और ना ही मरने देती है .
आँखों में तुम्हारी मैंने अपनी ज़िन्दगी देखी है,
और मौत भी.
लहरों में बहती हुई कागज़ की नाव की तरह ,
मैं मौज दर मौज बहे जा रही हूँ.
तुमको ही  साहिल जान कर.
तुम्हारी हर ख़ुशी  को अपनी ख़ुशी,
और हरएक गम को अपना गम मानकर .
पर सूखे हुए पत्तों को जमीन पर गिरा हुआ देख ,
कभी कभी डर उठता हैं ये दिल.
जिस हाथ को थाम कर  चलने लगे हैं ,
कभी उसे  बेवफ़ाई से झटक कर खो ना जाना .
फिर सायद हम  संभल ना पायें .
दिल नही जनाब, काँच का आईना है .
जरा संभालके , कहीं  टूट ना जाएँ  .
पलकों पर सजायें  हुए सपनों  के मोती ,
ईधर उधर बिखर ना जाएँ .
बड़ा मुश्किल हैं  अब तुमसे  ये राज छुपा पाना.  
नामुमकीन सा लगता है आजकल ,
तुम बिन हसना-रोना , खोना पाना.
फूलों की रंगत और काटों काटों की टीस,
सब एक  सी   नजर आती है, भीड़ भी जैसे खुद हो तनहा तनहा .
सच कहतें हैं अब नामुमकीन है तुम बिन जीना ,
गुमसुम   गुमसुम    तनहा तनहा .

Friday, July 15, 2011

तनहाई- चंद्रानी पुरकायस्थ

तनहाई


आज शाम बड़ी तनहा तनहा सी  हैं,
यादों की चिल्मन फिर से छा रही हैं नजरों पर .
तुम  दूर होकर भी पास थे कभी,
वस ध्यान रखना नजदीकिया भी बदल न जाएँ दूरियों में. 
सालो बाद संदूक के किसी कोने में हिफाज़त  से रखा हुआ
तुम्हारा वह पहले प्यार का पहला ख़त, 
जैसे  मुझको  तुम्हारे सामने ले आया सदियों के बाद .
बड़े तमन्नाओं से संजोकर रखा था उसे.
गुलाबी पन्ने पर  चाहत की  स्याही उड़ेल कर,
   लिखी गयी हर एक लफ्ज़ में  से ,
आज भी भीनी भीनी खुसबू   लिपटी हुई हैं जैसे.
कितनी चाहत छुपी हुई थी उन बातों में,
कितने वादे थे, कितनी कसमें थी .
वह वादें  सायद हम निभाना न पायें,
इसका मतलब वह झूटे तो नही.
चाँद
और
कमल का  मिलना नामुमकिन सी बात बात हैं ,पर  दोनों  अजनबी  नही.आज भी चाँद कमल को रात रात भर ,
निहारता रहता हैं ,
आज भी कमल के दिल में कसक उठती हैं
,
पाने की गुंजाईश न रखना , खोने का दूजा नाम तो नही
मेरी हथेलिओं के लकीरों में सायद  तुम्हारा नाम लिखा हुआ न हो ,
पर वह तुमसे जुदा  होने का  फरमान तो नही.

Saturday, July 2, 2011

tute hue sapno ki ahat


टूटे  हुए  सपनो की आहट - चंद्रानी पुरकायस्थ

तुमने कहाँ था "जान, इस बारिश में तड़प न होगी, तुम सिर्फ मेरी और सिर्फ मेरी होगी ". 
मैंने बड़े यकीन के साथ , तुम्हारी  आँखों के छलकते आईने में , अपने मचलते हुए चेहरे को देखा था.
तुमने इन  नाजुक से हाथो को अपनी हथेलियों में छुपाते हुए कहाँ था मुझसे ,
"इन चूड़ियों की खन - खन , और इस पायल की  छन छन में बस मेरा ही नाम होगा" ,
वह पल आज बड़ा रुलाते  हैं  मुझको .
मेरी चूड़ी और मेरे कंगन बार बार ये सवाल करते हैं क्या वह सब एक खुबसूरत सा सपना था,
जो रात के अँधेरे में गुम हो गया .
क्या कहूँ उनसे ? तुम ही कहो.. .
मेरी भीगी सी पलकों से गिरते हुए मोती को छु कर, कहाँ था तुमने ," इन बूंदों में  भी नशा सा हैं" .
मैंने शर्माके जब अपना चेहरा घुंघट  में छुपा लिया  , तुमने होले से कहा था,
"आज घुंघट को यों ही रहने दो , इस सावन में मेरा चाँद घटा की चादर में छुपा न होगा" .
आज वही घुंघट बार बार मुझसे लिपट लिपट कर पूछा करती हैं कहाँ हो तुम.
तुम ही बताओ क्या कहूँ में.
मेरी बिंदिया को चांदनी कहा करते थे न  तुम ,तो फिर आज इतना अँधेरा क्यों हा,
क्यों आज वही बिंदिया अंधेरो में सिसकिया ले रही हैं .
क्या तुम सारी रौशनी अपने साथ समेट कर ले गए हो ?
तुम ही कहों .............................

Tuesday, June 28, 2011

Anupama

अनुपमा...
चंद्रानी पुरकायस्थ 

सावन  का पहला दिन था वह,
बाहर तेज  बारिश हो रही थी .
 खिड़कीसे झांक कर देखा तो ,
तुम हाथ में एक रंगीन सी छत्री को पकडे हुए,
कही जा रही थी. 
धुँन्दले से उदास दिन में तुम्हारा दूधसफ़ेद दुपट्टा,
जैसे इशारों में  मुझको पास  बुला रहा था. 
और बेखबर तुम तेज तर्रार बूंदों से ,
खुद को बचाने की कौशिश में ,
एकबार उन बूंदों को ,
तो एकबार भीगे हुए अपने दुपट्टे को निहार रही थी.
मै  देखता ही रह गया तुमको,अनुपमा ...
कितना समय ऐसे ही बीत गया कुछ  पता नही  .
तुम सावन के महीने के खिले हुए,
स्निग्ध सौम्य पुष्पसी,
मन को मोह गयी.
और  मै  तुम में  कुछ इसतरह खो गया,
की  वास्तव की  दुनिया भी सपनो की नज़र आने लगी.
अचानक मेज पर रखा  हुआ ,
कांच का गिलास, उलट कर जमीन पर गिर पड़ा,
मेरे सपनों की तरह,
सपनों  से बाहर आकर देखा,
तो बारिश थम चुकी थी,
और तुम भी जा चुकी थी.
मन ही मन ये बिचार आया,
एक लम्हे में मैंने क्या पाया और क्या खो दिया .
तभी अचानक एहसास हुआ ,
उस एक लम्हे में सायद  मै  हज़ार जिंदगिया जी गया.








Monday, June 27, 2011

saya

उसका साया  
चंद्रानी पुरकायस्थ


कभी उजाले तो कभी अंधेरे में उसका साया , 
कुछ अजब सी तस्वीरे बना जाता है .
 बारिश के थमने के बाद  के सोन्धी खुसबू  की तरह ,
मेरे अस्तिव को झिंझोड़   कर  चला जाता है.
मेरे खिले हुए चेहरे को  उसका चेहरा ,
काले बादल की तरह ढक जाता है.
मेरे मोहब्बत की दास्तान का हर एक पन्ना,
अपनी  जहरीले आंसुओं से भिगों जाता है.
फेसबुक और अर्कुट  की लहरों में,
उसके सायें को आज भी जब तुम धुंडते रहते हो ,
तब मैं  एक पड़ौसी की तरह देखने वालों की कतार में खड़ी होती हूँ .
मेरे नए दिन का सूरज, उसके सायें से एक लम्हे की गुजारिश करता है.
पर वह साया फिर भी मेरे इर्द - गिर्द मंडराता रहता है....












chahat


 चाहत
चंद्रानी पुरकायस्थ



ख़ामोशी  का हर पल , अपने गुनगुनाहट से सवार दो.
ये जो चाँद आसमान में अपने खूबसूरती का दम भरता है, 
अपने चाहत की लाली से उसका भी रंग निखार दो .
हमने देखा हैं बरगद के पेड़ को पत्थोरों के जहाँ  में , 
तुम चाहो तो पत्थोरों में भी फूल खिलादो ....
दर असल , इन्सान की नाकामियाँ ,
उसके दिल के ही किसी ना किसी कोने में छुपी हुई होती है,  
कभी अपने अन्दर की इन कमजोरियों को मिटा कर तो देखो ,
जहाँ को जन्नत बनाना तो छोटी सी बात है , 
तुम चाहो तो जहन्नुम को जन्नत सा पाक बना दो .................

Sunday, June 26, 2011

dard


 दर्द 
 चंद्रानी पुरकायस्थ


क्या पता तुमको दर्द क्या होता है , मन तो एक गहरा  सागर है जिसमे कभी कभी  सैलाब का आना स्वाभाबिक सा है ... मेरी हथेलियों को जब तुम्हारे किस्मत की रेखाएं खुद से जोड़ने से मना कर देती है, तब उस शाम डूबते हुए सूरज में तुमको अपना चेहरा दिखाई देता है.. या फिर सुबह की पहली किरण के साथ रात की रानी का मुरझा जाना , उसमे तुमको अपना ही  साया दिखाई देता है.  पर एकबार उस मासूम अनाथ बच्चे की और देखो , जिसे दो दिनों से   पेटभर खाना नही मिला , या फिर एकबार झाँको उस खिड़की की और , जहाँ बूढी माँ को रोता छोड़ जवान बेटा  स्वर्ग सिधार गया , दर्द सायद वही होता है. ..
हर एक दुःख  की घड़ी में तुम मर जाने  की बाते किया करते हो, गर ऐसा हो पाता तो  आज इस दुनिया में कोई जिन्दा ना होता ..  जरा आँखों के सामने जमे हुए भ्रम के उस परदे को हटा  कर तो देखो, जिसे तुम दर्द समझते हो, वह तुम्हारे मखमली सपनो की दुनिया में एक चुभता हुआ रेत का तिनका मात्र है. जरा छु कर तो देखो. एकबार सच्चे दर्द को पहचान कर तो देखो, सायद तुमको एहसास हो जाये मेरी बातों का .....




Friday, January 21, 2011

My Fantasy moments: Pinki Purkayastha



I still remember my childhood days,
full of friends and enjoyments..
But some moments of loneliness ,
might be the precious fantasy moments..
the long afternoons of summer,
filled by the sounds of singing dove,
I used to look at the sky,
keeping my eyes at the windows.
looking at the clouds was the most interesting game,
I used to call those clouds using fantasy names...
Mom loved to show me sky ,
just after the sunset,
It was sweetest to look at the stars,
keeping my head on mom's lap...
with the storys of prince and princes,
and the flying horse...
i loved to sleep every night,
with mom's fairy songs.....
though I have grown up,
and really miss those days
But Still those moments live in my heart,
I love fairy tales........
I want to dediacte this blog to
My parents Mr.Pranesh and Mrs. Smriti Purkayastha
and also to the lady Late Nirasaha Mandal..who used to look after me during my childhood days... these three people introduced me with the world of fantasy and fairy tales.. i have enjoyed lots of fairy tales from pishimani(Nirasha Mandal)who is no more with us................i want to tell her"pishimoni..I love u"