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Friday, July 15, 2011

तनहाई- चंद्रानी पुरकायस्थ

तनहाई


आज शाम बड़ी तनहा तनहा सी  हैं,
यादों की चिल्मन फिर से छा रही हैं नजरों पर .
तुम  दूर होकर भी पास थे कभी,
वस ध्यान रखना नजदीकिया भी बदल न जाएँ दूरियों में. 
सालो बाद संदूक के किसी कोने में हिफाज़त  से रखा हुआ
तुम्हारा वह पहले प्यार का पहला ख़त, 
जैसे  मुझको  तुम्हारे सामने ले आया सदियों के बाद .
बड़े तमन्नाओं से संजोकर रखा था उसे.
गुलाबी पन्ने पर  चाहत की  स्याही उड़ेल कर,
   लिखी गयी हर एक लफ्ज़ में  से ,
आज भी भीनी भीनी खुसबू   लिपटी हुई हैं जैसे.
कितनी चाहत छुपी हुई थी उन बातों में,
कितने वादे थे, कितनी कसमें थी .
वह वादें  सायद हम निभाना न पायें,
इसका मतलब वह झूटे तो नही.
चाँद
और
कमल का  मिलना नामुमकिन सी बात बात हैं ,पर  दोनों  अजनबी  नही.आज भी चाँद कमल को रात रात भर ,
निहारता रहता हैं ,
आज भी कमल के दिल में कसक उठती हैं
,
पाने की गुंजाईश न रखना , खोने का दूजा नाम तो नही
मेरी हथेलिओं के लकीरों में सायद  तुम्हारा नाम लिखा हुआ न हो ,
पर वह तुमसे जुदा  होने का  फरमान तो नही.

2 comments:

  1. .



    चंद्राणी जी
    सस्नेह अभिवादन !

    मेरी हथेलियों की लकीरों में शायद तुम्हारा नाम लिखा हुआ न हो …
    पर वह तुमसे जुदा होने का फ़रमान तो नहीं !


    बहुत समर्पित प्रेम की रचना है … हृदयग्राही !

    आपकी अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती हैं


    हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. dhannnyabad rajenda ji.........ate rahiye ga.... aj ka din mere liye bahut bada din ha..........

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