Fantasy World


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Thursday, October 25, 2012

Durga Puja at Silchar : Wish you all  a very happy Navratri and Durga Puja
Part 1 :
Part 2 :
 
Part 3: 

Part 4:


Thursday, July 26, 2012

दास्ताँ -ए -दिल : चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी)



हम सोचते रहे  , किसी रोज तो बात होगी ,
ख्वाबों में ही सही , कभी तो मुलाकात होगी .
हर एक साँस में यो गूंजता रहा नाम तुम्हारा ,
हम सोचते रहे , कभी तो बरसात होगी.
आधी आधी  रात को , अध् खुली आखों से,
सुनी गलियों को निहारती रही.
तो कभी सूखे पत्तों की आहट को ,
तुम्हारा आना जान मुस्काती रही.
कभी कभी इंतेजार के पल ,
बूंद बनकर छलक पड़े.
काश कोई एक बूंद तुमको भी छु गयी होती  .
हमने तो खामोसी से बयाँ की थी दास्ताँ -ए -दिल ,
काश तुमको भी खामोसी की जुबाँ आती होती .



Wednesday, January 4, 2012

तुम ना होते तो- चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी )




कभी कभी सोचती हूँ मैं ,
तुम ना होते तो कैसी होती ज़िन्दगी  .
सायद बिन स्याही कलम की तरह ,
या फिर बिन बरसात सावन की तरह.
मैंने तो सोचा भी ना था,
कोई इतना भी चाह सकता है किसी को.
रूठने  मनाने के  मीठे से वह पल ,
ज़िन्दगी को किस तरह से  खुबसूरत बना देते हैं.
देखा है मैंने  तुम्हारी ही आँखों में.
क्या होता है खुद को  खोकर  किसी  के दिल में खुद को पा जाना .
अपनी आंसू के बदले , किसीके लबों पर  मुस्कान सजा  जाना ,
तुम  ही से सिखा है मैंने .
 हर एक लम्हा तुम अपनी याद दिला जाते  हो,
भीनी भीनी खुसबू की तरह महका जाते हो,
मेरा हर एक पल.
कभी कभी सोचती हूँ मैं ,
तुम ना होते तो कैसी होती ज़िन्दगी  .
सायद रुखी रुखी , सायद सूखे हुए पत्तों जैसी !
तुम ना होते तो  जाने कैसी होती ज़िन्दगी?????



















Saturday, November 19, 2011

मोहब्बत, मोहब्बत और सिर्फ मोहब्बत-चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी )


उस रोज जब शाम ढलेगी ,
मैं होले से मुस्काते हुए, तुम्हारे बाहों में सिमट जाऊँगी,
जिस तरह सागर की बाहों में चांदनी सिमट जाती हैं .
तुम्हारे धड़कन की हर एक साज पर ,
झूम उठेगी दुनिया  मेरी .
तुम्हारे  आँखों के आईने में मेरा शर्माता हुआ चेहरा ,
चाहत की लाली से खिल उठेगा .
एक लम्हे के लिए ये दुनिया जैसे थम सी जाएगी.
खामौसी की चादर में लिपटी हुई वह शाम ,
मोहब्बत, मोहब्बत और  सिर्फ मोहब्बत , इन तीन लफ्जों में ,
पूरी दास्ताँ बयाँ कर जाएगी .
आँखों के काजल से एक नाम ,
आसमान के सीने में लिख जाऊ ,
ये  पैगाम छुपाकर रख दूँ सितारों के बिच .
कल अगर में न रहूँ , तो धुंड लेना मुझे,
तुम्हारे दिल के ही  किसी कोने होगा मेरा आशियाना.
बस सिने पर हात रख कर एकबार याद करना , 
तुम्हारे  धड़कन की हर एक ताल में से आवाज़ आयेगी  मेरी ........




Saturday, October 8, 2011

तुम , मैं और खामौशी - चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी)




तुम , मैं और खामौशी ,एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
कभी तुम यादों में आते हो ,तो कभी ख्वाबों में .
कभी बादल बनकर घिर आते  हो ,मेरी अँखियों के आसमान में
तो कभी खुशी बनकर छा जाते हो, इन लवों की मुस्कान में .
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
जब पास होते हो , तब ख़ामोशी से आँखों में आँखे डाल,जाने क्या क्या कह जाते हो .
और जब  दूर होते हो , तब भी मेरी  ख़ामोशी का हर एक पल  ,
अपनी यादों से महका जाते हो.
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
ऑघि ऑघि रात को,  जाग उठती हूँ मैं, लगता है जैसे कानों मेरे ,
धीरे से कोई कुछ कह गया हो , एक अजीब सी हलचल होती हैं सीने में ,
सोचती हूँ कहीं ये मोहब्बत  तो नही ?
सूखे हुए पत्तों की मर्मराहट में  आजकल किसी का नाम सुनाई देता हैं.
मेरे रेशमी दुपट्टे को छुती हुई , सावन की वह बहकी हवा ,
लगता है जैसे चुपके से तुम अपनी मोहब्बत का ईकरार कर गए हो .
या फिर सर्दी की धुप का  होले से , मेरे गालों को छु जाना ,
लगता है  जैसे की तुम अपने  दिल में छुपे हुए प्यार का ,एहसास दिला रहे हो.
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.
मेरे दिल के हर एक पन्ने पर , सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा हुआ है ,
जरा अपनी धडकनों से , मेरे दिल के हर एक पन्ने  को पलट कर देखो तो नज़र आए.
पर हाँ , याद रखना जो कहना है आँखों से ही कहना ,
जो सुनना  है आँखों ही आँखों में ही सुन लेना ,दिल के बातें ख़ामोशी से हो , वही अच्छा है,
तुम , मैं और खामौशी, एक अजीब सा रिश्ता है हम तीनों के वीच.

Tuesday, September 13, 2011

यादें - चंद्रानी पुरकायस्थ


ए  चांद , आज तेरी चांदनी मेरी रेशमी जुल्फों  के साये में ,
खेलती हुई, कुछ कहती जा रही है ,कुछ यादों के तस्वीरें बनाती हुई,
कुछ सपनो के ताने बाने बुनती जा रही है.
तुझे याद है ना, वह सदियों पुरानी बातें,वह हसने-रोने के पल, वह मीठी सी फरियादें .
 मेरा वह आधी- आधी रात तक जागते रहना ,
वह पहले प्यार का सन्देशा , धड़कन की हलचल.
तुझ से बाते करते रहना, कितनी बार मिन्नतें की थी मैंने तुझसे,
कितनी बार अर्ज़िया भेजी थी , की मेरे खुवाबो में रोज आने वाला ,
चाहे  जो भी हो, जहाँ भी  हो,हलके के उसके कानो में कह्देना , 
कोई पलके बिछाये बैठा है राहों में तेरे, कभी लगा तू मुझ पर हसता होगा,
कहता होगा , अरी पागल, कहानियों के दुनिया से बाहर निकल ,
कभी महसूस होता जैसे तूने मुझसे कहा  हो  ,
इश्क पर जोर नहीं हैं ये वह आतिश , जो जलाये ना जले और बुझाये ना बुझे .
फूलों की पंखुड़ियों से  लिपटी हुई , ओस के बूंदों की तरह ,
मेरे दिल के  हर एक तमन्नायों से लिपटा हुआ तू,
कई  बार मैंने कसम दी थी तुझे तेरी  चांदनी की,
कहा था , वह जो बादल की आड में छुपा हुआ मेरे दिल को चुराता जाता हैं,
वह कभी तो किसी बिराने में खड़ा, तन्हाई के किसी एक अनजाने पल में,
तुझे निहारता होगा, होले से कहना उसे,
दुनिया के किसी कोने में कोई ,
तेरे चाहत का दिया जलाये बैठा   है  ,
दुनिया की भीड़ में भी तनहा तनहा ,
इन्तेजार के घड़ियों को आंसुओं के मोतीओं  से भिगोता हुआ,
यों ही तड़पता तरसता जीता चला जा रहा है .....




Thursday, August 25, 2011

एहसास -चंद्रानी पुरकायस्थ




आज फिर छलक आई आंखों में मेरी ,
चाहत के कुछ भीगे हुए पल.
तुम ना मानो तो बस बुंदे है, मानो तो  मोती है  अनमोल.
बहुत सी अनकही बातें इस दिल में छुपायें जी रही  हूँ  ,
कभी आँखों में झाँकों  तो नजर आएँ.  
कभी दूर दूर, तो कभी पास पास , 
कुछ सपनों के दस्तक और तुम्हारा एहसास .
बड़ी हसीन लग रही हैं ये जिंदगी आजकल .
तुम क्यों हर बार सितारों  की तरह  रौशन कर जाते हो इस दिल को? 
सावन की पहली बारिश जैसी मीठी सी एक मुस्कान सजा जाते हो होठो पर मेरे, क्यों?
वक़्त या वजह, सब दायरों से  दूर , 
अपनी एक अलग ही जगह बनाये हुए हो  धड्कनों में मेरे  .
पहले कभी तो ऐसा  सोचा ना था ,
की हकीकत में भी चाहत एक मीठा सा तराना  है.
सर्दी की धुप जैसा  खुशनुमा ,चांदनी की तरह दिलकश ;
और बारिश के सुबह के जैसा हल्का हल्का दर्द जगाने वाला .
जो ना जीने देती हैं और ना ही मरने देती है .
आँखों में तुम्हारी मैंने अपनी ज़िन्दगी देखी है,
और मौत भी.
लहरों में बहती हुई कागज़ की नाव की तरह ,
मैं मौज दर मौज बहे जा रही हूँ.
तुमको ही  साहिल जान कर.
तुम्हारी हर ख़ुशी  को अपनी ख़ुशी,
और हरएक गम को अपना गम मानकर .
पर सूखे हुए पत्तों को जमीन पर गिरा हुआ देख ,
कभी कभी डर उठता हैं ये दिल.
जिस हाथ को थाम कर  चलने लगे हैं ,
कभी उसे  बेवफ़ाई से झटक कर खो ना जाना .
फिर सायद हम  संभल ना पायें .
दिल नही जनाब, काँच का आईना है .
जरा संभालके , कहीं  टूट ना जाएँ  .
पलकों पर सजायें  हुए सपनों  के मोती ,
ईधर उधर बिखर ना जाएँ .
बड़ा मुश्किल हैं  अब तुमसे  ये राज छुपा पाना.  
नामुमकीन सा लगता है आजकल ,
तुम बिन हसना-रोना , खोना पाना.
फूलों की रंगत और काटों काटों की टीस,
सब एक  सी   नजर आती है, भीड़ भी जैसे खुद हो तनहा तनहा .
सच कहतें हैं अब नामुमकीन है तुम बिन जीना ,
गुमसुम   गुमसुम    तनहा तनहा .