दर्द
चंद्रानी पुरकायस्थ
क्या पता तुमको दर्द क्या होता है , मन तो एक गहरा सागर है जिसमे कभी कभी सैलाब का आना स्वाभाबिक सा है ... मेरी हथेलियों को जब तुम्हारे किस्मत की रेखाएं खुद से जोड़ने से मना कर देती है, तब उस शाम डूबते हुए सूरज में तुमको अपना चेहरा दिखाई देता है.. या फिर सुबह की पहली किरण के साथ रात की रानी का मुरझा जाना , उसमे तुमको अपना ही साया दिखाई देता है. पर एकबार उस मासूम अनाथ बच्चे की और देखो , जिसे दो दिनों से पेटभर खाना नही मिला , या फिर एकबार झाँको उस खिड़की की और , जहाँ बूढी माँ को रोता छोड़ जवान बेटा स्वर्ग सिधार गया , दर्द सायद वही होता है. ..
हर एक दुःख की घड़ी में तुम मर जाने की बाते किया करते हो, गर ऐसा हो पाता तो आज इस दुनिया में कोई जिन्दा ना होता .. जरा आँखों के सामने जमे हुए भ्रम के उस परदे को हटा कर तो देखो, जिसे तुम दर्द समझते हो, वह तुम्हारे मखमली सपनो की दुनिया में एक चुभता हुआ रेत का तिनका मात्र है. जरा छु कर तो देखो. एकबार सच्चे दर्द को पहचान कर तो देखो, सायद तुमको एहसास हो जाये मेरी बातों का .....
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