Fantasy World


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Tuesday, June 28, 2011

Anupama

अनुपमा...
चंद्रानी पुरकायस्थ 

सावन  का पहला दिन था वह,
बाहर तेज  बारिश हो रही थी .
 खिड़कीसे झांक कर देखा तो ,
तुम हाथ में एक रंगीन सी छत्री को पकडे हुए,
कही जा रही थी. 
धुँन्दले से उदास दिन में तुम्हारा दूधसफ़ेद दुपट्टा,
जैसे इशारों में  मुझको पास  बुला रहा था. 
और बेखबर तुम तेज तर्रार बूंदों से ,
खुद को बचाने की कौशिश में ,
एकबार उन बूंदों को ,
तो एकबार भीगे हुए अपने दुपट्टे को निहार रही थी.
मै  देखता ही रह गया तुमको,अनुपमा ...
कितना समय ऐसे ही बीत गया कुछ  पता नही  .
तुम सावन के महीने के खिले हुए,
स्निग्ध सौम्य पुष्पसी,
मन को मोह गयी.
और  मै  तुम में  कुछ इसतरह खो गया,
की  वास्तव की  दुनिया भी सपनो की नज़र आने लगी.
अचानक मेज पर रखा  हुआ ,
कांच का गिलास, उलट कर जमीन पर गिर पड़ा,
मेरे सपनों की तरह,
सपनों  से बाहर आकर देखा,
तो बारिश थम चुकी थी,
और तुम भी जा चुकी थी.
मन ही मन ये बिचार आया,
एक लम्हे में मैंने क्या पाया और क्या खो दिया .
तभी अचानक एहसास हुआ ,
उस एक लम्हे में सायद  मै  हज़ार जिंदगिया जी गया.








Monday, June 27, 2011

saya

उसका साया  
चंद्रानी पुरकायस्थ


कभी उजाले तो कभी अंधेरे में उसका साया , 
कुछ अजब सी तस्वीरे बना जाता है .
 बारिश के थमने के बाद  के सोन्धी खुसबू  की तरह ,
मेरे अस्तिव को झिंझोड़   कर  चला जाता है.
मेरे खिले हुए चेहरे को  उसका चेहरा ,
काले बादल की तरह ढक जाता है.
मेरे मोहब्बत की दास्तान का हर एक पन्ना,
अपनी  जहरीले आंसुओं से भिगों जाता है.
फेसबुक और अर्कुट  की लहरों में,
उसके सायें को आज भी जब तुम धुंडते रहते हो ,
तब मैं  एक पड़ौसी की तरह देखने वालों की कतार में खड़ी होती हूँ .
मेरे नए दिन का सूरज, उसके सायें से एक लम्हे की गुजारिश करता है.
पर वह साया फिर भी मेरे इर्द - गिर्द मंडराता रहता है....












chahat


 चाहत
चंद्रानी पुरकायस्थ



ख़ामोशी  का हर पल , अपने गुनगुनाहट से सवार दो.
ये जो चाँद आसमान में अपने खूबसूरती का दम भरता है, 
अपने चाहत की लाली से उसका भी रंग निखार दो .
हमने देखा हैं बरगद के पेड़ को पत्थोरों के जहाँ  में , 
तुम चाहो तो पत्थोरों में भी फूल खिलादो ....
दर असल , इन्सान की नाकामियाँ ,
उसके दिल के ही किसी ना किसी कोने में छुपी हुई होती है,  
कभी अपने अन्दर की इन कमजोरियों को मिटा कर तो देखो ,
जहाँ को जन्नत बनाना तो छोटी सी बात है , 
तुम चाहो तो जहन्नुम को जन्नत सा पाक बना दो .................

Sunday, June 26, 2011

dard


 दर्द 
 चंद्रानी पुरकायस्थ


क्या पता तुमको दर्द क्या होता है , मन तो एक गहरा  सागर है जिसमे कभी कभी  सैलाब का आना स्वाभाबिक सा है ... मेरी हथेलियों को जब तुम्हारे किस्मत की रेखाएं खुद से जोड़ने से मना कर देती है, तब उस शाम डूबते हुए सूरज में तुमको अपना चेहरा दिखाई देता है.. या फिर सुबह की पहली किरण के साथ रात की रानी का मुरझा जाना , उसमे तुमको अपना ही  साया दिखाई देता है.  पर एकबार उस मासूम अनाथ बच्चे की और देखो , जिसे दो दिनों से   पेटभर खाना नही मिला , या फिर एकबार झाँको उस खिड़की की और , जहाँ बूढी माँ को रोता छोड़ जवान बेटा  स्वर्ग सिधार गया , दर्द सायद वही होता है. ..
हर एक दुःख  की घड़ी में तुम मर जाने  की बाते किया करते हो, गर ऐसा हो पाता तो  आज इस दुनिया में कोई जिन्दा ना होता ..  जरा आँखों के सामने जमे हुए भ्रम के उस परदे को हटा  कर तो देखो, जिसे तुम दर्द समझते हो, वह तुम्हारे मखमली सपनो की दुनिया में एक चुभता हुआ रेत का तिनका मात्र है. जरा छु कर तो देखो. एकबार सच्चे दर्द को पहचान कर तो देखो, सायद तुमको एहसास हो जाये मेरी बातों का .....