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Saturday, November 19, 2011

मोहब्बत, मोहब्बत और सिर्फ मोहब्बत-चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी )


उस रोज जब शाम ढलेगी ,
मैं होले से मुस्काते हुए, तुम्हारे बाहों में सिमट जाऊँगी,
जिस तरह सागर की बाहों में चांदनी सिमट जाती हैं .
तुम्हारे धड़कन की हर एक साज पर ,
झूम उठेगी दुनिया  मेरी .
तुम्हारे  आँखों के आईने में मेरा शर्माता हुआ चेहरा ,
चाहत की लाली से खिल उठेगा .
एक लम्हे के लिए ये दुनिया जैसे थम सी जाएगी.
खामौसी की चादर में लिपटी हुई वह शाम ,
मोहब्बत, मोहब्बत और  सिर्फ मोहब्बत , इन तीन लफ्जों में ,
पूरी दास्ताँ बयाँ कर जाएगी .
आँखों के काजल से एक नाम ,
आसमान के सीने में लिख जाऊ ,
ये  पैगाम छुपाकर रख दूँ सितारों के बिच .
कल अगर में न रहूँ , तो धुंड लेना मुझे,
तुम्हारे दिल के ही  किसी कोने होगा मेरा आशियाना.
बस सिने पर हात रख कर एकबार याद करना , 
तुम्हारे  धड़कन की हर एक ताल में से आवाज़ आयेगी  मेरी ........