उसका साया
चंद्रानी पुरकायस्थ
कभी उजाले तो कभी अंधेरे में उसका साया ,
कुछ अजब सी तस्वीरे बना जाता है .
बारिश के थमने के बाद के सोन्धी खुसबू की तरह ,
मेरे अस्तिव को झिंझोड़ कर चला जाता है.
मेरे खिले हुए चेहरे को उसका चेहरा ,
काले बादल की तरह ढक जाता है.
मेरे मोहब्बत की दास्तान का हर एक पन्ना,
अपनी जहरीले आंसुओं से भिगों जाता है.
फेसबुक और अर्कुट की लहरों में,
उसके सायें को आज भी जब तुम धुंडते रहते हो ,
तब मैं एक पड़ौसी की तरह देखने वालों की कतार में खड़ी होती हूँ .
मेरे नए दिन का सूरज, उसके सायें से एक लम्हे की गुजारिश करता है.
पर वह साया फिर भी मेरे इर्द - गिर्द मंडराता रहता है....
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