कभी कभी सोचती हूँ मैं ,
तुम ना होते तो कैसी होती ज़िन्दगी .
सायद बिन स्याही कलम की तरह ,
या फिर बिन बरसात सावन की तरह.
मैंने तो सोचा भी ना था,
कोई इतना भी चाह सकता है किसी को.
रूठने मनाने के मीठे से वह पल ,
ज़िन्दगी को किस तरह से खुबसूरत बना देते हैं.
देखा है मैंने तुम्हारी ही आँखों में.
क्या होता है खुद को खोकर किसी के दिल में खुद को पा जाना .
अपनी आंसू के बदले , किसीके लबों पर मुस्कान सजा जाना ,
तुम ही से सिखा है मैंने .
हर एक लम्हा तुम अपनी याद दिला जाते हो,
भीनी भीनी खुसबू की तरह महका जाते हो,
मेरा हर एक पल.
कभी कभी सोचती हूँ मैं ,
तुम ना होते तो कैसी होती ज़िन्दगी .
सायद रुखी रुखी , सायद सूखे हुए पत्तों जैसी !
तुम ना होते तो जाने कैसी होती ज़िन्दगी?????
तुम ना होते तो जाने कैसी होती ज़िन्दगी?????
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने |
ReplyDeleteधन्यवाद जयकृष्ण जी ...
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